आज की सावित्री *************** अलका एक सुन्दर सुशील पढ़ी लिखी स्वाभिमानी चंचल और अति उत्साहित लड़की थी ।कभी न डरने वाली कभी न हारने वाली । अपनी मुस्कान से सबका मन मोह लेती थी वह । पर आज विवाह के मंडप में बैठ कर मन में एक अजीब सा डर लग रहा था उसे । इतना डर तो उसे कॉलेज और हॉस्टल में कई लोगों के बीच रैगिंग में भी नहीं लगा था और न ही पूरे कॉलेज के सामने पहली बार सैमिनार में प्रस्तुति देते समय लगा था जितना आज ननदों और जेठानियों की खुसर फुसर से लग रहा था । शायद वह अस्थाई था और ये स्थाई । जीवन पर्यन्त का निर्णय । सोच सोच कर ही मन काँप जाता आगे भविष्य में क्या होगा ? कैसा होगा ? उसके अपने पिता का परिवार एकाकी था जहाँ न जिम्मेदारी थी न कोई बोझ । पिता ने हर सुविधा के लिए नौकर की व्यवस्था जो कर रखी थी । पिता की दुलारी और माँ की लाड़ली थी वह ।और यहां संयुक्त परिवार ।। अपने अरमानों अपने सपनों अपने ख्वाबों को मन में संजोए अलका ने ससुराल में अपना पहला कदम रखा । पर यह क्या ? आते ही काम का बोझ और तानों से स्वागत । रुह काँप सी गई उसकी । फिर भी जीवन पर्यन्त न हारने की कसम खाई थी उसने । असफलता और निराशा तो जैसे छू तक न सकी थी उसको । सो हर पल खुशी का आवरण पहन लहराती बलखाती रही वो । फिर सोचा सहने की भी एक सीमा होती है सो न चाहते हुए भी एक अलग दुनियां बसाने का फैसला किया । अलग आशियाना तो बन गया पर समस्याओं ने अभी भी उसका पीछा नहीं छोड़ा अब तक बच्चे भी हो गए थे सो परिवार को नये सिरे से चलाने का तरीका सोच ही रही थी कि पति राकेश गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए । ताउम्र चलने वाली लाइलाज डाइबिटीज से । अपने को संभाल भी न सकी थी कि चिंता के बोझ ने उसे आधा कर दिया । उस पर ससुराल वालों ने उसे ही दोषी ठहरा दिया । एक बार तो लगा आँधियां सब कुछ उड़ा ले जाएंगी अपने साथ ।कभी मन बोझिल हो जाता पर स्वाभिमान आड़े आ जाता । किसी से सहायता लेकर जीवन पर्यत्न कर्ज़ के बोझ तले दबना नहीं चाहती थी वो। हां उसके लिए कर्ज़ सिर्फ रुपयों के लेन-देन का ही नहीं होता थोड़ी सी मदद को भी लोग ब्याज सहित वसूलना नहीं भूलते ।कभी किसी के सामने आँखें नहीं झुकाईं थी उसने और न ही आँखें तरेरीं थीं उसने ।बस सबसे आँखें मिला कर सामना कर सकूं और सम्मान से जी सकूं इतनी सी कामना थी उसकी । अपने तो सारे सपने दफ़न कर दिए उसने पर अपनों के सपनों में जीना सीख लिया था उसने सो अपनों को बनाने की ललक में नारी की जो पर्दे के पीछे की अहम भूमिका होती है उसी को उठाने का बीड़ा उठा लिया था उसने। सो बिना हिम्मत हारे पारिवारिक दायित्वों को पूरा करते हुए पति के व्यापार को संभाला तो पति ने आगे बढ़ कर वकालत की पढ़ाई की क्योंकि डाइबिटीज में सिर्फ दवा की ही नहीं बल्कि उसके लिए सही व्यायाम और डाइट की भी आवश्यकता थी जो व्यापार में संभव नहीं था इसलिए उन्होने वकालत का रास्ता चुना जिसमें वे सफल भी हुए और आज वे शहर के सफल और नामी वकीलों में से एक हैं । साथ ही पूर्ण रूप से स्वस्थ भी ।। आज अलका को एहसास हुआ कि कोई भी सफलता पाई जा सकती है अगर हिम्मत और लगन है तो । आज जब सोचती है तो लगता है कि उसकी पढ़ाई लिखाई व्यर्थ नहीं गई उसनेे जो डाइट थिरैपी का कोर्स किया था उसी के सहारे वो पति राकेश को स्वस्थ रखने में सफल हो पाई है आज वह नारी के आदर्शों पर पूर्णतः खरी उतरी है और उसने अपने साथ साथ पूरे परिवार को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सचमुच आज की नारी सत्यवान की सावित्री से किसी भी मायने में कम नहीं है ।।। लेखिका अंजली सारस्वत शर्मा लखनऊ उत्तर प्रदेश
Main ek seedhi Saadi saral swabhao ki ladki thi main graduate hun...
Main ek seedhi Saadi saral swabhao ki ladki thi main graduate hun aur meri shadi aise Ghar me huee Jahan koi lady educated nhi thi shadi ke baad kuch din to sab kuch theek Raha lekin thode dino ke baad meri saas ne mujhe paresaan karna suru kr Diya aur bo khud to anpad thi hi isliye unko sirf anpad women hi acchi lagti aur kahti padi likhi ko jyada najakat hoti h kyunki bo aise Kam karti thi jisse kabhi kuch nuksan ho jata aur kabhi kuch isliye main unko sahi tarike se Kam karne ko kahti to bo meri ek n sunti aur apne hi man ka sab kuch karti ek din main pregnent ho gayi aur Maine socha ki ab is khabar ko sunkar sab bahut khus honge lekin jab Maine bola ki main maa banne Bali hun to meri saas ko jara bhi khusi nhi huee aur boli Kahan se le ayi mujhe tab bahut hi jyada gussa aya sasural me rah Rahi thi aur kahin main gayi hi nhi tab bhi mujhse ye baat boli gayi mujhe bahut sadma laga is baat ka kuch time ke baad mere beta hua tha tab bhi inko khas khusi nhi huee mera beta 6 mahine ka ho Gaya tab uski eyes dukhne lagin tab ye log jyadatar apni marji se hi Sara Kam karte the so mere bete ki ankhon mein mere sasur ne apni ankhon ka eye drop bacche ki ankhon mein dal Diya aur roj hi uski ankhon me dal Diya karte the bacche ki ankhen bilkul safed ho gayi uski ankhon mein reaction ho gaya main drop dalne ke liye mana karti lekin meri ek n suni jati aur uski ankhe hi bekar kr di ye sab dekhkar mujhse n raha Gaya aur Maine alag hone ka faisla kiya aur alag ho gayi mere bete ki hamesha ke liye ankhe kharab kr di un jahilon ne har jagah maine ilaaz kraya apne bete ka lekin ankhen theek n huee alag hone ke baad mere sasural balon ne mujhe aur jyada pareshan karne Lage un logo ne mujhe Jaan se Marne ka bhi kayi baar koshish ki lekin kamyab nhi ho paye jab mujhe realise hua to main ek baar to bilkul toot hi gayi thi main lekin fir maine himmat ki aur apni education ka fayada uthaya Maine self depend hone ka faisla kiya aur bank me nokri ki vacancy nikli maine form bhara aur mera selection ho Gaya mujhe job mil gayi uske bad maine paise jodne shuru kiya aur loan lekr ek Ghar kharida aur ab ek gadi kharid rahi hun aur khana peena sab kuch acche se kr rahi hun main AJ mere paas do bete aur nokri Ghar sab kuch hogaya khuda ki meharbani se aur main happyily ji rahi hun meri kamyabi dekhkar ab bahut se log apni apni betiyon ko pada likha rahe h k bo bhi kamyaab hongi aur ab bahut se log apne beton ke liye padi likhi ladki hi talas kr rahe h samaj ke logon ki sari problems ko bhi solve kr deti hun Minto me I wish education bahut jaruri h aur education sabhi ko milni chahiye
मेरा नाम असमा है मेरा जन्म 15December 2006 को बहराइच जिले के रिसिया कस्बे में हुआ था। मेरी उम्र 18 साल है मैंने कक्षा 7 तक रिसिया में पढ़ाई की और मुझे उर्दू पसंद था तो मेरा एडमिशन मदरसा में करवा दिया गया मैंने 1 साल बहुत अच्छे से पढ़ाई की फिर अगले साल की पढ़ाई हो ही रही थी कि कोरोना महामारी से सब बंद हो गया फिर 2 साल तक घर पे ही रहे लेकिन मैंने उर्दू के साथ साथ कक्षा 10 का भी फॉर्म डाल दिया लेकिन 10 वी का परीक्षा कोरोन के चलते नही हुआ फिर कुछ दिन के बाद मेरे घर वाले मेरी शादी मेरे बुआ के लड़के से तय कर दी मेरी मर्ज़ी के बैगेर बाद में जब मुझे बताया गया तो मैंने कहा कि मुझे आगे पढ़ाई करनी है तो घर वाले बोले अभी कौन कर रहा है शादी 2 साल बाद करना लेकिन मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था कि कैसे बोलूं नहीं करनी है शादी और वो लड़का अनपढ़ था तो मेरा बिल्कुल मन न था और मुझे खुद के पैरों पे खड़े होना है किसी के सामने हाथ न फैलाऊ इसलिए मैंने सोचा कुछ करने मैंने अपने घर वालो से कहा कि मुझे ब्यूटी पार्लर कोर्स करना है तो मेरी मां बुआ के वहा से पूछे कि असमा ये करना चाहती है तो क्या करवा सकते है उस टाइम मुझे बहुत गुस्सा आई कि अभी न शादी न कुछ मुझे कुछ करना है तो वहा क्यों पूछूं मैं अपने घर वालो से सिर्फ पूछूंगी तो मैंने किसी तरह गुस्सा कंट्रोल किया फिर मैंने ब्यूटी पार्लर कोर्स किया फिर मैंने सोचा कि कुछ और भी करना है तो मैंने घर वालो से पूछा कि मुझे कम्प्यूटर कोर्स भी करना है तो इसके लिए पापा ने तुरंत हां बोल दिया और कुछ पैसे दे दिए एडमिशन के लिए फिर इसी के चलते मैंने 12 वी भी पास कर ली और 2 साल भी पूरे हो गए अब मुझे डर था कि कही मेरी शादी न करवा दे लेकिन मैंने शादी न करने के लिए घर वालों से बहुत लड़े कि नही करना लेकिन सब उल्टा समझते इसलिए मैंने फ़िर ज्यादा नहीं बोला घर वालो से। और वो लड़का 2 साल में बहुत सारे इल्जाम लगा चुका था तो मेरी अम्मी बोलती करना होगा तो करेंगे या नही करेंगे शादी लेकिन कोई ये nhi बोलना था कि असमा तुम्हारी क्या मर्जी है, करना हो तो करो या ना करो मैंने बहुत परेशान थीं लेकिन मैंने 12 वी के बाद बोला कि मुझे आगे पढ़ाई करनी है तो मेरा एडमिशन के लिए अम्मी ने एक लोग के घर गई कि कौन सा कॉलेज सही है पढ़ाई के लिए और उन्होंने मेरा एडमिशन बहराइच के किसान पी.जी. कॉलेज में करवा दिए जो कि बहराइच जिले की सबसे मानी जानी कॉलेज है बहराइच जिले का सबसे बड़ा। एडमिशन के बाद मैंने उस भैया से अपनी सारी बातें बताई उन्होंने किसी तरह मेरे पापा से बात की तो असमा आगे पढ़ना चाहती है तो पढ़ा लीजिए तो फिर घर वालो 2 साल शादी बढ़ा दी लेकिन घर वाले मना नही कर रहे है इसलिए मुझे डर है कि कहीं कर न दे और वो लड़का बहुत ख़राब है उसको सही से बात नही करनी आती एक बार मैंने मज़बूरी में घर वालो के कहने से बात की तो बहुत घटिया तरीके के बात की मैने कॉल कट कर दिया गुस्से में दोबारा कभी नही चाहा बात करना उससे मैं पूरे दिल से उनका धन्यवाद करती हूं जो भैया मुझे हौसला दिया और पढ़ाई के लिए आगे का रास्ता दिखाया और पापा से किसी तरह से शादी की बात कर के आगे बढ़वा दिया और मुझे पढ़ाई के लिए बोले की तुम अच्छे से पढ़ो और खूब आगे बढ़ो बस घर वाले शादी न करे इसलिए आज मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं क्लास न छूटे किसी दिन और खूब पढ़ाई के लिए मैं हॉस्टल में ही रहने लगी घर पे रह कर अच्छे से पढ़ाई न हो पाती और शादी वाली बातों से परेशान न रहूं इसलिए वो भैया मुझे हॉस्टल में रहने की सलाह दी और मैं घर की सब से बड़ी थी भाई बहनों से इसलिए घर वाले और परेशान है शादी के लिए, लेकिन मैं खुद से कुछ करना चाहती हूं मैं चाहती हूं खुद की पहचान बनाऊं इसलिए आज अगर थोडा भी मन नही करता है तो भी पढ़ने बैठ जाती हूं कि अगर असफल हुई तो घर वाले शादी न कर दे ।। मैं खुद से कुछ करना चाहती हूं खुद की पहचान बनाना चाहती हूं
This story is mine There was a young girl named Juhi who loved ...
This story is mine There was a young girl named Juhi who loved to experiment with makeup. As she grew older, her passion for makeup artistry only intensified. She would spend hours collecting the newspaper cuttings of Articles published in various magazines of the then Makeup Influencer Shahnaz Hussain, Vandana Luthra etc later watching YouTube tutorials and practicing on herself and her friends. After finishing high school, She got married and have children. After growing her children she decided to pursue her passion and enrolled in a makeup artist program. The program taught her everything from basic makeup application to advanced techniques like special effects makeup. Upon completing her training, Juhi started working at a local salon as a makeup artist. She quickly gained a reputation for her creativity and attention to detail, and her clients would leave feeling confident and beautiful. As her reputation grew, Juhi decided to start her own makeup artistry business Gold Queen Makeup. She invested in high-quality makeup products and tools and began advertising her services on social media. Her business took off, and soon she was working with high-profile clients for events like weddings, Local Events, and photoshoots. She even had the opportunity to work with celebrities on red carpet events. Juhi continued to hone her craft, attending workshops and seminars to stay up-to-date on the latest trends and techniques. She also expanded her services to include makeup lessons and consultations, helping women feel confident and beautiful in their everyday lives. Through hard work and dedication, Juhi built a successful career as a makeup artist, bringing joy and confidence to her clients every day. Now Juhi is taking her vision to its implementation phase which she visualize a decade before resulting a simplified mobile app for learning the Makeup Skills very quickly and practice for the same to any empanelled Beauty salon with a very low cost. This story is mine There was a young girl named Juhi who loved to experiment with makeup. As she grew older, her passion for makeup artistry only intensified. She would spend hours collecting the newspaper cuttings of Articles published in various magazines of the then Makeup Influencer Shahnaz Hussain, Vandana Luthra etc later watching YouTube tutorials and practicing on herself and her friends. After finishing high school, She got married and have children. After growing her children she decided to pursue her passion and enrolled in a makeup artist program. The program taught her everything from basic makeup application to advanced techniques like special effects makeup. Upon completing her training, Juhi started working at a local salon as a makeup artist. She quickly gained a reputation for her creativity and attention to detail, and her clients would leave feeling confident and beautiful. As her reputation grew, Juhi decided to start her own makeup artistry business Gold Queen Makeup. She invested in high-quality makeup products and tools and began advertising her services on social media. Her business took off, and soon she was working with high-profile clients for events like weddings, Local Events, and photoshoots. She even had the opportunity to work with celebrities on red carpet events. Juhi continued to hone her craft, attending workshops and seminars to stay up-to-date on the latest trends and techniques. She also expanded her services to include makeup lessons and consultations, helping women feel confident and beautiful in their everyday lives. Through hard work and dedication, Juhi built a successful career as a makeup artist, bringing joy and confidence to her clients every day. Now Juhi is taking her vision to its implementation phase which she visualize a decade before resulting a simplified mobile app for learning the Makeup Skills very quickly and practice for the same to any empanelled Beauty salon with a very low cost.
महिलाओं बेटियों के उत्थान के लिए काम करना गरीब निराश्रित महिलाओं को सरकार की योजनाएं दिलाना जिस घर में बेटी पैदा हुई है उसके घर जाकर उसको तथा उसके माता-पिता को सम्मानित करना बेटियों एवं महिलाओं के लिए शासन स्तर चलाई जाने वाली योजनाएं जैसे कन्या सुमंगला योजना सुकन्या ,समृद्धि योजना, विधवा पेंशन आदि का पात्र महिलाओं को लाभ दिलवाना शिक्षा अधिकार अधिनियम आरटीई के द्वारा गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दिलवाना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के माध्यम से सामाजिक कार्यक्रम चलाना प्रीती गुप्ता MA.,DEled
समाज के उत्थान हेतु, विशेषकर बालिकाओ एवं स्त्रियों हेतु व्यक्ति जब समाज में एक पुरुष शिक्षित होता है,तब वह केवल एक व्यक्ति होता है लेकिन जब आप किसी स्त्री को शिक्षित करते है तो आप एक पीड़ी को शिक्षित करते हैं। नारी निर्माता होती है,स्रष्टि का समाज का युग का एक अच्छे समाज की नीव अच्छे व्याक्तियों से बनती है और एक स्त्री रुपी मां ही इस समाज के निर्माण का आधार होती हैं। मैं सविता वर्मा सहायक प्रोफेसर पी० जी० कॉलेज बहराइच। मेरी शुरुआती दिन काफी संघर्षपूर्ण रहे हैं। मेरा जन्म नानपारा जिला बहराइच उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े जिले में 1993 में हुआ। मेरी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा नानपारा में ही हुई। काफी संघर्ष करना | तत्पश्चात् पड़ा क्योकि उच्च शिक्षा हेतु मुझे उच्च शिक्षा ग्रहण के दौरान ही मेरी शादी वर्ष 2000 में हो गई मेरे में लोग बहुत रूदिवाड़े थे वहाँ पर किसी स्त्री को बाहर निकलकर शिक्षा एवं कार्य ससुराल करने की अनुमति नहीं थी। परंतु जहाँ चाह होती है, वहाँ राह होती हैं, मुझे जीवनसाथी के रूप में डूबते को तिनके का जैसे सहारा मिल गया अर्थात् मेरे पति जो उस समय सिविल सेवा की तैयारी कर थे उन्होंने मेरी लगन को देखकर मुझे प्रोत्साहित किया। इस वजह उन्होंने परिवार के खिलाफ जाकरझूठ का सहारा लेकर मेरी मदद की पारिवारिक स्थिति भी अच्छी न होने के कारण शिक्षा एवं परिवार के आर्थिक स्थिति को देखते हुए एक शिक्षक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया। तथा अपनी स्नातक की पढ़ाई तथा उत्तराखण्ड राज्य मैंने अपनी मैंने ग्रहण की। इन विपरीत परिस्थितियों में मैंने एक अलख से भी शिक्षा जगाई कि मेरी जैसी बहुत सी लड़कियाँ, स्त्रियों आदि के लिए भी कुछ करने का बीड़ा उठाया। मैंने विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एजुकेशनल संस्थान में प्रबंधक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया, क्योंकि मेरे आस-पास की बस्तियाँ गाँव मुस्लिम बाहुल्य थीं जिनमें रूढ़िवादिता गरीबी,बेरोज़गारी, अशिक्षा व्याप्त थी मैंने संस्था के माध्यम से सिलाई, कढ़ाई, पेंटिंग, कम्प्यूटर, मेहंदी आदि की शिक्षा निः शुल्क देना प्रारम्भ किया पर यह इतना मी आसान नहीं था क्योंकि मेरे परिवार के सदस्यों एवं मोहल्ले वासियों की प्रताड़ना, उलाहना भी सहनी पड़ी। तथा उन स्थियों एवं बच्चियों को भी काफी मशक्कत उठानी पड़ी बहुत सारी माहवारी से संबंधित बीमारियों से स्त्रियां ग्रासित थी जो इस विषय पर बात करना भी अपने धर्म के खिलाफ मानती थी। उन तक पहुँचकर, इत्यादि के माध्यम से उनको समाज के जोड़ने की मुहिम आज भी जारी है। इन सभी कार्यों को करते हुए कई संस्थानों द्वारा सम्मानित भी हुई एवं अपने दो बेटियों को जन्म देकर उनकी भी भरण- पोषण करते हुए निरंतर समीर की भांति परिवार एवं समाज को आगे ले जाने हेतु स्थान हेतु प्रयासरत रहती हूँ। आज लगभग हज़ारों बालिकाओं एवं स्त्रियों की प्रशिक्षण देकर उनको समाज में एक पहचान दिलाई तथा अपने घरेलू कार्यों का निर्वहन करते हुए मैंने कला के क्षेत्र में भी कदम रखा जिसमें मेरे द्वारा बहराइच में बॉम्बे ऑर्ट के कोर्स की शुरुआत अपने निवास पर ड्रीम डांस क्लास की शुरुआत तथा बालिकाओं के प्रशिक्षण हेतु निःशुल्क सर्टिफिकेट, सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना इत्यादि कार्य निरंतर जारी है। इसी दौरान जिंदगी में बहुत उतार -चढ़ाव आया, बहुत सारी विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए वर्ष 2013 में जिले के प्रतिष्ठित डिग्री कॉलेज में किसान पी० जी० कॉलेज में चयन हुआ । एक सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया वर्तमान में एक शिक्षिका , समाजसेविका, योग शिक्षिका एवं आस्था वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्ष डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम अन्य फाउंडेशन की प्रबंधक एवं एक ड्रांस क्लास एवं कई संस्थाओं का संचालन कर रही हूँ और अंतिम सांस तक यह जारी रहेगा लिखने को , सीखने को अभी बहुत कुछ पड़ा है, ईश्वर ने अगर समय दिया तो अपने जिले की महिलाओं को सशक्त बनाना है, बालिकाओं को उच्च स्तर पर ले जाना यह प्रयास बिना रुके, बिना थके जारी रहेगा, क्योंकि- स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि. - "कमी यह मत कहना कि मैं यह नहीं कर सकता, ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि तुम अनंतस्वरुप हो तुम सर्वशक्तिमान हो।" यह मेरा एक संक्षिप्त परिचय है जो अभी अधूरा भी है पर धीरे -2 यह पूर्ण हो रहा और होगा। और अंततः मैं गोल्डी मसाले की इस विधा को सधन्यवाद देती हूँ। जो इतने सुप्रसिद्ध एवं सुविख्यात ब्राण्ड के साथ साथ महिलाओं के लिए इतना अच्छा कार्यक्रम भी कर रहे हैं।
I want to change people mind towards women perspective through my...
People around me call me allrundar. I have a solution to every p...
उन्नतीस साल की थी मैं जब शादी करके एक शहर से गाँव में आई! बहुत मुश्किल था खुद को ससुरालवालों के रंग में रंगना! यहाँ के रीति-रिवाज अलग, मेरे मायके के अलग, वो शहर, यह गाँव! फर्क़ तो बहुत था लेकिन एडजस्ट करना पड़ा जैसे हर लड़की को करना पड़ता है! मेरे पति, सास-ससुर व देवरों का सहयोग था इसलिए इतना भी मुश्किल नहीं था वह सफर! मैं सुबह-शाम अपना पूरा तन-मन जुटा कर घर के छुट- मुट से लेकर बड़े से बड़े कामों को बख़ूबी पूरा करने में लगी रहती थी! फिर भी कहीं-न-कहीं, कोई-न - कोई कमी रह ही जाती थी जिसे लेकर मेरे और मेरी सासु-माँ के बीच अनबन हो जाती थी! इस अनबन के चलते भी हमारे रिश्ते में कोई खास बदलाव नहीं आया, न तो मेरे लिए उनका प्यार कम हुआ और न ही उनके लिए मेरा! अनबन, प्यार, हँसी-मज़ाक, गलतियाँ करना, नई-नई चीजें सीखना! इन सबके चलते एक साल बीत गया और मैंने अपनी पहली संतान को जन्म दिया__ एक बेटी को! डिलिवरी के बाद डॉक्टर ने बताया कि यही मेरी पहली और आखिरी संतान होगी, इसके बाद मैं गर्भवती नहीं हो सकती! मेरा एक बेटी को जन्म देना, वो भी बड़े ऑपरेशन से! इससे मेरे पति या ससुराल वालों के व्यावहार में कोई फर्क़ नहीं आया! क्या यह सिर्फ मेरा भ्रम था? हालांकि सबने खूब स्नेह जताया पर स्नेह के पीछे छुपी गंभीरता पूरी तरह न छुप सकी! हाँ, मेरे पति को एक बेटी का पिता कहलाने में कोई झिझक न थी! उनका प्यार तो मेरे लिए और प्रगाढ़ ही हुआ! चूँकि हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पति के कहने पर शादी के बाद मैंने कमाना भी छोड़ दिया था! पैसों की तंगी होने पर भी मैंने अपने ससुराल में कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं की! ऑपरेशन का खर्च उठाना मुश्किल तो रहा होगा लेकिन मेरे पति ने यह कभी नहीं जताया! हॉस्पिटल में नर्स भी मुझसे कई बार कहती थी कि, "आपके पति आपको बहुत प्यार करते हैं!" लोग अक्सर हमसे पूछते है कि हमारी लव मैरेज हुई है क्या? जबकि हमारी शादी सुसंगत थी! अब मैं और मेरे पति एक बेटी के साथ पूर्णतः खुश थे! डॉक्टर की बात सुनने के बाद हम और बच्चे की चाह भी नहीं रखते थे! मैं एक संयुक्त परिवार में ब्याही थी जहाँ मैं अकेली बहु थी और मेरे पाँच देवर अभी कुँवारे थे! संयुक्त परिवार में खुशहाल समय बीत ही रहा था कि जिस साल मैं माँ बनी, उस ही साल पांच महीनों बाद मेरे सत्ताईस साल के जवान, बीमारी से ग्रस्त देवर का देहांत हो गया! जिसके कारण मेरे हँसमुख और सकारात्मक पति अत्यंत शांत और अवसादग्रस्त हो गए! एक नयी उम्र का, अपने सपनों को पूरा करने में जुटा, बेहद मेहनती और प्रिय भाई को खोना कोई छोटी हानि नहीं थी! इस गम से सब उभर ही रहे थे कि अगले साल अप्रत्याशित रूप से मैंने दूसरी बेटी को जन्म दिया! सब कुछ पहले जैसा ही था, कहीं हताशा, कहीं निराशा लेकिन किसी के भी चेहरे पर कोई खास उत्सुकता न थी! शायद इसलिए क्योंकि कोई अपना बेटा तो कोई अपना भाई खोने के ग़म से अभी तक उभर नहीं पाया है! वक़्त बीतता जा रहा था! मैं घर और बच्चे संभालने में इस तरह व्यस्त होती जा रही थी कि खुद को मैंने अपनी व्यस्त दिनचर्या में पूरी तरह भुला दिया! तीन साल बाद मैं एक बार फिर गर्भवती हुई! मेरी दोनों बेटियों का स्कूल में दाखिला हो चुका था! उनके नन्हें- नन्हे हाथों में कमल थमने को ही थी कि सकुशल एक बार फिर मैं एक बेटी की माँ बनी! तीन छोटे-छोटे बच्चों की माँ होते हुए दस से बारह सदस्यों वाला घर अकेले संभालना कोई आसान काम नहीं था! सुबह सूरज निकलने से पहले उठकर दोनों बच्चों को स्कूल भेजती, सबका नाश्ता व खाना बनाती! किसी को स्कूल के लिए नाश्ता करने की जल्दी तो किसी को काम पर निकलने के लिए नाश्ते की जल्दी! साथ ही में अपनी नन्ही- सी जान की देखभाल करना, घर की साफ-सफाई वगैरह और न जाने कितने कामों से निबट कर बैठती ही थी कि बच्चों का स्कूल से आने का समय हो जाता था! हालांकि पति का और देवरों सहयोग था लेकिन उन्हें भी तो काम पर जाना होता था! इस सब के बीच कब सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम, शाम से रात और रात से अगला दिन बदलता जा रहा था, कुछ पता ही नहीं! इसमें से कुछ इतना मुश्किल नहीं था जितना कि यह सुनना था कि, "तूने आज तक इस घर के लिए किया ही क्या है?" अब मेरे देवरों की भी शादी हो गयी! उनके भी बच्चे हो गए! किसी की ज़ोर- ज़बरदस्ती नहीं थी पर सबके सुझाव और खुद की क्षमता से चौथे बच्चे को जन्म दिया! एक बार फिर ऑपरेशन से__ चौथी भी बेटी! पाँच साल बाद अब चौथी संतान भी लड़की हुई तो घर का माहौल कुछ यूँ था कि खूब आँसू बहाकर नवजात बच्ची का स्वागत किया गया! हॉस्पिटल में भी बात चर्चा में थी, लोग बातें करते फिर रहे थी कि एक जोड़ा है जिनके पास पहले ही तीन बेटियाँ हैं और अब एक बार में दो ऑपरेशन से चौथी भी बेटी हुई है! इस माहौल का असर अब मेरी तीनों बेटियों पर भी था! शारीरिक रूप से अब मैं पूरी तरह हार चुकी थी; इस काबिल भी न थी कि पाँच मिनट लगातार दौड़ सकूँ! जब चीजें अच्छी होती थी तब होती थी लेकिन मन-मुटाव होने पर मुझे यह सुनने को मिल ही जाता था कि मैं एक बेटे को जन्म न दे सकी! मैं अपनी बेटियों से पूर्णतः संतुष्ट थी पर घरवालों और समाज की बातें सोच कर कभी-कभी सोच में पड़ जाती थी और एक बेटा होने को जरूरी समझने लगती थी! और कहीं-न- कहीं चाहती तो मैं भी थी एक बेटा! मेरे पति ने बेशक कभी कहा ना हो पर उन्हें भी एक बेटे की संगत की चाह तो होगी ही! और किस को नहीं होती खैर? मेरा मान-सम्मान, महत्व घर में भले ही डोल जाए लेकिन मैंने एक बेटा पाने का विश्वास न डोलने दिया! मेरा भरोसा अडिग रहा! मैंने, मेरे पति ने, ससुरालवालों ने भी कभी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा! लेकिन समाज की बातें, और फिर "कल उनके ब्याहने के बाद हम न रहें तो वे किसके घर को अपना मायका कहेंगी?" का विचार तनिक बेचैन सा कर ही जाता था! मैं घर की सेवा में जरूर तत्पर थी लेकिन मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं थी! पर ईश्वर से अपनी गोद भरने की आस जरूर लगाए बैठी थी! कोरोना काल आया और मेरी सासु- माँ चल बसीं! म्रत्यु के बाद वे अक्सर मुझे सपने में दिखाई देती थी, मुझसे बात करती हुई दिखायी देती थी! जीते-जी तो उनके आखिरी दिनों में मेरे साथ बिल्कुल न बनी पर एक दिन उनकी म्रत्यु के डेढ़ साल बाद वे मुझे सपने में दिखाई दी और उन्होंने मुझसे साफ़ शब्दों मे कहा कि, "सूखे पेड़ हरे हो जाएंगे!" ठीक नौ महीनों बाद, पिछले ही साल ईश्वर की असीम कृपा और मेरे प्रगाढ़ विश्वास से मेरी गोद भर गयी! एक नन्हा-मुन्ना बाल गोपाल हमारे घर पधारा! जब मैंने जन्म के बाद पहली बार अपने बेटे को सीने से लगाया तो क्या तो किसी के ताने और क्या किसी की कही-सुनी? वे सब रिश्तेदार जो हमेशा टोंट कँसने का मौका ढूँढते थे, आज पूरी तरह नाते तोड़ चुके हैं! पति का कहना है कि घर में असल लक्ष्मी और उन्नती तो मेरे कदमों से आयी है! आज मेरे पास चार बेटियाँ और एक डेढ़ साल का बेटा है! आज भी संयुक्त परिवार के सहयोग और पति के प्यार से सुखी हूँ! अब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि लड़ाई समाज या रिश्तेदारों या उनके तानों से नहीं थी ब्लकि खुद की खुद से थी! खुद के संदेह का ही संघर्ष खुद के विश्वास से था! शादी के सत्रह साल बाद, छियालीस साल की उम्र में जो सीख मुझे समय और अपने सफर के साथ मिली है, वह है कि "चमत्कार प्रार्थना से हो ना हो, विश्वास से जरूर होते हैं!" पूछे जाने पर भी यहि कहती हूँ कि अगर आपको विश्वास है तो भले ही देर से लेकिन मंजिल जरूर मिल जाएगी! चाहे आप गृहिणी हो या बड़े-बड़े सपनों को पूरा करने में हौसला रखने वाली किशोरी, विश्वास और धीरज रखें तो आपको कोई नहीं हरा सकता! जितनी बार बीच में निराशा हो, समझ लेना कि एक कदम आगे बढ़ाने का मौका मिला है!